न्यूज डेस्क, 22/03/2025
मलेरकोटला, जो अब पंजाब का एक जिला है, ऐतिहासिक रूप से एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसकी स्थापना 15वीं शताब्दी में हुई थी और यह एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। इसका इतिहास सांस्कृतिक और धार्मिक सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध है।
शुरुआती इतिहास
मलेरकोटला की स्थापना 1454 में शेख सदरुद्दीन ने की थी, जो अफगान मूल के थे। यह क्षेत्र शुरू में “मलेर” के नाम से जाना जाता था, जो यहां रहने वाले संत हजरत शेख सादरुद्दीन की दरगाह के कारण प्रसिद्ध हुआ। बाद में 17वीं शताब्दी में बेइजाद खान नामक पठान शासक ने “कोटला” किले का निर्माण कराया, जिससे इसका नाम “मलेरकोटला” पड़ा।
मुगल और सिख इतिहास में भूमिका
मलेरकोटला की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह और फतेह सिंह) से जुड़ी है। जब वजीर खान ने उन्हें सरहंद में दीवार में जिंदा चिनवाने का आदेश दिया, तब मलेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद खान ने इस फैसले का विरोध किया था। इस कारण से सिखों ने मलेरकोटला को हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखा और यहां के लोगों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया।
ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता संग्राम
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मलेरकोटला की भूमिका सीमित थी, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण रियासत बना रहा। ब्रिटिश शासन के दौरान, यह एक स्वतंत्र मुस्लिम रियासत के रूप में था, और 1947 में भारत के विभाजन के समय इसके नवाब ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया।
आधुनिक मलेरकोटला
विभाजन के बाद, जब पंजाब के अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा हुई, तब भी मलेरकोटला में शांति बनी रही। यहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब आज भी कायम है। 2021 में, पंजाब सरकार ने इसे जिला घोषित किया, जिससे यह राज्य का 23वां जिला बन गया।
विशेषताएँ
- धार्मिक सहिष्णुता और सिख-मुस्लिम सौहार्द का प्रतीक
- प्रसिद्ध सूफी संतों की दरगाहें
- दस्तकारी और कढ़ाई उद्योग का केंद्र
मलेरकोटला का इतिहास इसे पंजाब और भारत की सांस्कृतिक विविधता और सौहार्द का एक बेहतरीन उदाहरण बनाता है।