चंडीगढ, 4/06/2025
हरियाणा मुख्यमंत्री नायाब सिंह सैनी ने आज मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक से शिष्टाचार भेंट की इस दौरान श्री सैनी ने मनीषीसंत से आर्शीवाद प्राप्त करते हुए कहा मुझे बचपन से ही संतो मुनियों का सानिध्य प्राप्त है और आज मैं जिस पोजीशन पर हंू ये सब संतो मुनियो की अपार कृपा हेै।
श्री सैनी मनीषीसंत से कई अहम मुद्दो पर लंबी वार्तालाप करते हुए आने वाली 8 जुलाई को आचार्य भिक्षु की 300वीं जन्म जंयती पर कहा मेरा मेरा “अहो भाग्य होगा जन्म जंयती पर भाग लूंगा।
सीएम सैनी ने तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु श्रमण परंपरा के महान संवाहक बताते हुए कहा आचार्य भिक्षु की अहिंसा सार्वभौमिक क्षमता पर आधारित थी। आचार्य भिक्षु जी का जीवन-दर्शन केवल जैन धर्म की सीमाओं तक सीमित नहीं, अपितु सार्वभौमिक जीवन-मूल्यों का साक्षात स्यरूप है। उन्होंने कहा था “सत्य पर अडिग रहो, पर अहंकार से नहीं, विनय से। उनका विश्वास था कि धर्म वह है जो आत्मा को शुद्ध करे और समाज को अनुशासित बनाए। संयम, साधना, सेवा और संगठन- इन चार आधारों पर खड़ा उनका चिंतन आज भी मार्गदर्शक प्रकाश-स्तंभ के रूप में प्रज्वलित है।
दान-दया के विषय में लौकिक एवं लौकतर भेद रेखा प्रस्तुत कर आचार्य भिक्षु ने जैन समाज में प्रचलित मान्यता के समक्ष नया चिंतन प्रस्तुत किया, उस समय समाजिक सम्मान का मापदण्ड दान-दया पर अवलंबित था। आचार्य भिक्षु की दृष्टि में आगम सम्मत नहीं था। आचार्य भिक्षु ने अपने मौलिक चिंतन के आधार पर नये मूल्यों की स्थापना की। हिंसा व दान-दया संबंधी उनकी व्याख्या सर्वथा वैज्ञानिक कही जा सकती है। उनकी प्रेरणा से तेरापंथ धर्मसंघ एक आचार्य, एक विचार, एक संघ’ की मर्यादा में दृढ़, शुद्ध और संगठित जीवन की मिसाल बना है। यह आयोजन न केवल एक संत की जयंती है, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और नैतिक उत्थान का एक ऐतिहासिक अवसर भी है।
इस दौरान मनीषीसंत ने कहा मनीषीसंत ने कहा हम कैसे मान लेते हैं कि माता-पिता का पूरा जीवन केवल बच्चों के समीप ही बुना होना चाहिए. माता-पिता का अपना कोई सुख, अपनी कोई दुनिया हमारी समझ से भी कोसों दूर लगती है. लखनऊ में वह मजे से रह रहे थे, लेकिन उनको और उनकी पत्नी को समझाया गया कि अकेले रहना ठीक नहीं. अच्छा वाला मकान था जो उनकी यादों और सुख-दुख का ‘ताजमहल’ था, उसे ‘ इमोशनल अत्याचार’ के तहत बिकवा दिया गया. सुरक्षा, बच्चों का साथ और उनके करियर का ऐसा जाल बुना गया, जिसमें एक ही बात समझ में आई कि बच्चे तो बार-बार आ जा नहीं सकते, इसलिए आप ही उनके पास जाकर रहें।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया यह हमारे समाज और समय की एक ऐसी उलटबांसी है, जिसमें बुजुर्गों की पूरी दुनिया उलट-पुलट होती जा रही है. हम उनको, उनकी चेतना को केवल और केवल खुद से जोड़े बैठे हैं. उनकी पसंद, चित्त के आनंद और मन के रमने को हम लगभग भूलते जा रहे हैं. यह कुछ कुछ ऐसा है कि आप जंगल से अपने प्रिय परिंदों को इसलिए अपने आलीशान, भव्य लेकिन नकली पार्क में रखना चाहते हैं, जिससे जंगल का सारा मनोरम आपके पास रहे. आपकी सुविधा, चाहत के अनुसार रहे। बड़ों की पूरी दुनिया अपने गांव से ही नहीं, छोटे शहरों से सिमटते, कटते हुए केवल माचिस की तीलियों जैसे, मुर्गी के दड़बों जैसे घरों मैं कैद होती जा रही है. हम माता-पिता, बड़े बुजुर्गों के स्वादानुसार नमक की जगह अपना स्वाद उन पर थोप रहे हैं।