न्यूज डेस्क, 23/03/2025
पंजाब विभाजन का दर्द आज भी मौजूद है
1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो इसका सबसे गहरा घाव पंजाब ने झेला। यह केवल एक राजनीतिक विभाजन नहीं था, बल्कि लाखों लोगों की जिंदगियों, संस्कृतियों और भावनाओं का विभाजन था। आज़ादी के 75 से अधिक साल बाद भी पंजाब के बंटवारे का दर्द जिंदा है। यह दर्द केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे आज भी लोग अपनी यादों, परिवारों और समाज में महसूस करते हैं।
विभाजन का सबसे बड़ा असर पंजाब पर क्यों पड़ा?
विभाजन से सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में पंजाब सबसे ऊपर था, क्योंकि यह दो देशों के बीच बंट गया। पश्चिम पंजाब पाकिस्तान का हिस्सा बन गया और पूर्वी पंजाब भारत में रह गया। लाखों लोगों को अपने घर, ज़मीन और पुश्तैनी धरोहर छोड़कर पलायन करना पड़ा। इस दौरान हिंसा, दंगे, हत्याएं, बलात्कार और लूटपाट की भयावह घटनाएं हुईं, जिससे पंजाब का हर परिवार प्रभावित हुआ।
पारिवारिक विछोह और पीढ़ियों तक बना दर्द
बंटवारे के कारण हजारों परिवार बिखर गए। कुछ लोग पाकिस्तान में रह गए, तो कुछ भारत आ गए। कई लोग आज भी अपने परिवार के उन सदस्यों को याद करते हैं जो उस समय खो गए थे। कई बुजुर्ग अब भी अपने पुराने गांवों, घरों और बचपन की यादों को संजोए हुए हैं, लेकिन कभी लौट नहीं सकते।
संस्कृति और परंपराओं का नुकसान
विभाजन के कारण पंजाब की समृद्ध संस्कृति पर भी गहरा असर पड़ा। गुरुद्वारा ननकाना साहिब, पंजा साहिब और करतारपुर जैसे ऐतिहासिक धार्मिक स्थल पाकिस्तान में रह गए, और भारतीय सिखों को वहां जाने के लिए वीज़ा की जरूरत पड़ती है। पंजाबी भाषा, संगीत, खान-पान और रीति-रिवाजों पर भी विभाजन का प्रभाव पड़ा।
भावनात्मक और राजनीतिक असर
विभाजन के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना रहा। कई युद्ध हुए, सीमा पर झड़पें होती रहीं और दोनों देशों के बीच दुश्मनी की भावना बढ़ी। लेकिन आम पंजाबी लोगों के दिलों में आज भी एक-दूसरे के लिए अपनापन है। भारत और पाकिस्तान के पंजाब के लोग एक-दूसरे की खुशियों और दुखों को समझते हैं, लेकिन राजनीति और सीमाओं ने उन्हें दूर कर दिया है।
आज भी दर्द क्यों जिंदा है?
- पुराने रिश्तों की यादें – कई परिवार अब भी अपने पूर्वजों की ज़मीन और बिछड़े रिश्तेदारों की कहानियां सुनाते हैं।
- धार्मिक स्थल पाकिस्तान में रह गए – ननकाना साहिब और करतारपुर साहिब जैसी जगहें वहां हैं, जहां भारतीय सिखों को जाने में मुश्किलें आती हैं।
- सीमा की कड़ाई – वाघा बॉर्डर और दूसरे सीमावर्ती इलाकों पर सख्त सुरक्षा के कारण लोग अपने पूर्वजों के गांवों को देखने तक नहीं जा सकते।
- भारत-पाक संबंधों की खटास – दोनों देशों के बीच लगातार तनाव रहने के कारण पंजाबी समुदायों के बीच रिश्ते और कमजोर हो गए हैं।
समाधान और उम्मीद की किरण
हाल के वर्षों में करतारपुर कॉरिडोर जैसी पहलें एक नई आशा लेकर आई हैं, जिससे भारतीय सिख बिना वीज़ा पाकिस्तान में गुरुद्वारा करतारपुर साहिब जा सकते हैं। ऐसे और कदम उठाए जाने की जरूरत है, ताकि दोनों देशों के लोग अपने बिछड़े हुए रिश्तेदारों से मिल सकें और साझा संस्कृति का आनंद ले सकें।
पंजाब का विभाजन सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक ऐसा ज़ख्म है जो पीढ़ियों तक बना रहेगा। यह केवल सीमाओं का बंटवारा नहीं था, बल्कि दिलों और जिंदगियों का भी विभाजन था। समय के साथ इस दर्द को कम किया जा सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह मिटाना मुश्किल है। जब तक लोगों को एक-दूसरे से मिलने की आज़ादी नहीं मिलेगी और दोनों देशों के बीच अमन-चैन नहीं होगा, तब तक पंजाब विभाजन का यह दर्द जिंदा रहेगा।