नई दिल्ली, 30/06/2025
लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने आज संसदीय कार्य को अधिक प्रभावी बनाने के लिए संसाधनों के प्रबंधन, लोकतंत्र की रक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आज तपोवन, धर्मशाला में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) इंडिया रीजन, ज़ोन–II के वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राज्य विधानसभाओं से लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त बनाने, विधायी कार्यों की दक्षता और पारदर्शिता बढ़ाने तथा अपने निर्वाचन क्षेत्रों की चुनौतियों और आकांक्षाओं को बेहतर ढंग से संबोधित करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं, नवाचारों और तकनीक को साझा करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि भारत की संसद संसदीय कार्यों की दक्षता बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे तकनीकी नवाचारों का व्यापक रूप से उपयोग कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि भारत की संसद इन नवीनतम तकनीकी प्रगति को राज्य विधानसभाओं के साथ साझा करने के लिए तैयार है, जिससे पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और सुशासन को बढ़ावा मिलेगा।
इस अवसर पर श्री बिरला ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की ‘वन नेशन, वन लेजिस्लेटिव प्लेटफॉर्म’ पहल का उल्लेख करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि वर्ष 2026 तक भारत की संसद सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साझा मंच स्थापित कर देगी, जिससे विधायी विमर्श, बजट तथा अन्य विधायी पहलों पर सूचना का सहज आदान-प्रदान संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि यह पहल राज्य विधानसभाओं के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और नवाचार को प्रोत्साहित करेगी, जिसका लाभ अंततः जनता को मिलेगा।
देशभर के जनप्रतिनिधियों से आह्वान करते हुए श्री बिरला ने कहा कि ग्राम पंचायतों से लेकर नगर पालिकाओं और राज्य विधानसभाओं तक, चुने हुए प्रतिनिधियों को अपने संस्थानों को संवाद, नवाचार और उत्कृष्टता के केंद्र में बदलना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और जिसकी विविधता अत्यंत व्यापक है, उसके ऊपर लोकतांत्रिक संस्थाओं को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नवाचारी बनाने की बड़ी जिम्मेदारी है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर को उद्धृत करते हुए श्री बिरला ने कहा कि किसी भी संविधान या संस्था की सफलता उसके सदस्यों और अनुयायियों के आचरण पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि विधायी संस्थाओं को सशक्त बनाना और उनके गौरव को बनाए रखना आवश्यक है, जिसके लिए संस्थाओं के भीतर संवाद और बहस को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि रचनात्मक चर्चा और तार्किक तर्क-वितर्क न केवल व्यक्तिगत बल्कि संस्थागत प्रतिष्ठा को भी बढ़ाते हैं।
श्री बिरला ने यह रेखांकित किया कि जनता की अपेक्षाओं को सम्मानजनक व्यवहार और प्रभावी शासन के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधायी संस्थाओं को विकास योजनाओं, अवसंरचना निर्माण और पर्यावरण संरक्षण जैसे प्रमुख मुद्दों को संबोधित करते हुए प्रगति के लिए आधुनिक तरीकों को अपनाना चाहिए।
हिमाचल प्रदेश की गौरवशाली लोकतांत्रिक विरासत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि 1921 में शिमला में पहला पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन आयोजित किया गया था, जो लोकतांत्रिक सुधारों की दिशा में एक ऐतिहासिक क्षण था। उन्होंने यह भी बताया कि विट्ठलभाई पटेल को केंद्रीय विधायी परिषद का अध्यक्ष हिमाचल प्रदेश से चुना गया था। उन्होंने हिमाचल प्रदेश विधानसभा की सराहना की कि यह देश की पहली पेपरलेस (काग़ज़ रहित) विधानसभा बनी। उन्होंने यह भी कहा कि हिमाचल के लोग अपनी देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं। श्री बिरला ने आशा व्यक्त की कि यह सम्मेलन नए विचारों और दृष्टिकोणों को प्रेरित करेगा तथा विधायिकाओं को सशक्त बनाएगा और जनप्रतिनिधियों को जनसेवा के लिए अधिक सक्षम बनाएगा।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, श्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश, हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष, श्री कुलदीप सिंह पठानिया; हिमाचल प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री, श्री हर्षवर्धन चौहान और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। जोन-II से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के पीठासीन अधिकारी तथा उत्तर प्रदेश विधान सभा, कर्नाटक विधान सभा, तेलंगाना विधान सभा और विधान परिषद के पीठासीन अधिकारी तथा हिमाचल प्रदेश विधानमंडल के सदस्यों ने उद्घाटन सत्र की शोभा बढ़ाई।